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शनिदेव को सरसों का तेल क्यों चढ़ाया जाता है? जानिए इसके धार्मिक और वैज्ञानिक कारण

लखनऊ। हर शनिवार देशभर के शनि मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। लोग श्रद्धा से शनिदेव को सरसों का तेल चढ़ाते हैं और उनसे कृपा की कामना करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर शनिदेव को सरसों का तेल क्यों चढ़ाया जाता है? इस परंपरा के पीछे न सिर्फ गहरी धार्मिक मान्यताएं हैं, बल्कि इसके वैज्ञानिक कारण भी हैं, जो आपको हैरान कर सकते हैं।

पौराणिक मान्यता: हनुमान जी और शनिदेव की कथा

एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, रामायण काल में रावण के पुत्र मेघनाथ ने शनिदेव को युद्ध में पराजित कर उन्हें बंदी बना लिया था और उन्हें गहरे कष्ट दिए थे। इसी दौरान हनुमान जी ने शनिदेव को बंदीगृह से मुक्त कराया और उनके पूरे शरीर पर सरसों का तेल लगाया ताकि उनके घावों को आराम मिले। सरसों के तेल से उन्हें तुरंत राहत मिली और वे शीघ्र स्वस्थ हो गए। तभी से सरसों का तेल शनिदेव को प्रिय माना जाने लगा और यह परंपरा शुरू हुई कि शनिवार को उन्हें तेल चढ़ाया जाए।

धार्मिक महत्व: न्याय के देवता शनिदेव

हिंदू धर्म में शनिदेव को ‘न्याय का देवता’ माना गया है। वे प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं, इसलिए उनकी कृपा और रुष्टता दोनों ही अत्यधिक प्रभावी मानी जाती हैं। शनिदेव का दिन शनिवार होता है और इस दिन नीले वस्त्र, काले तिल, उड़द की दाल और सरसों के तेल से उनकी विशेष पूजा की जाती है। माना जाता है कि ऐसा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और जीवन की परेशानियां कम होती हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण: सरसों के तेल के औषधीय गुण

सरसों का तेल न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी छिपे हैं। सरसों के तेल में ऐंटी-इंफ्लेमेटरी और ऐंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं। यह रक्त संचार को बेहतर बनाता है, जोड़ों के दर्द में राहत देता है और त्वचा के लिए भी लाभकारी है। जब इसे दीपक में जलाया जाता है तो यह हवा में मौजूद जीवाणुओं को नष्ट करता है और वातावरण को शुद्ध करता है। इसलिए कहा जाता है कि सरसों का तेल जलाने या चढ़ाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।

कैसे करें शनिदेव को सरसों का तेल अर्पित

शनिवार को स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें। फिर एक पीतल या मिट्टी के दीपक में सरसों का तेल भरकर उसे शनिदेव की प्रतिमा या तस्वीर के सामने जलाएं। ‘ॐ शनिदेवाय नमः’ मंत्र का जाप करते हुए शनिदेव को सरसों का तेल अर्पित करें। पूजा में नीले रंग के फूल, काले तिल और उड़द की दाल का भी उपयोग करें। अंत में शनिदेव की आरती कर अपनी मनोकामना उनके समक्ष प्रकट करें।

निष्कर्ष: आस्था और विज्ञान का अद्भुत संगम

शनिदेव को सरसों का तेल चढ़ाने की परंपरा एक अद्भुत उदाहरण है कि कैसे भारतीय संस्कृति में धार्मिक आस्था और वैज्ञानिक सोच का संगम देखने को मिलता है। यह न सिर्फ भक्तों के मन को शांति देता है, बल्कि स्वास्थ्य और वातावरण की दृष्टि से भी लाभकारी है। इसलिए अगली बार जब आप शनिवार को शनि मंदिर जाएं, तो इस परंपरा के पीछे की गहराई को जरूर याद रखें।

क्या आप ऐसी ही और परंपराओं के धार्मिक और वैज्ञानिक पहलुओं के बारे में जानना चाहेंगे?