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तो इसलिए पूजा-पाठ के बाद ज़रूर होती है आरती, जानिए इसका धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

नई दिल्ली: आपने अक्सर देखा होगा कि भगवान की पूजा संपन्न होने के बाद आरती अवश्य की जाती है, चाहे वह घर का मंदिर हो या कोई बड़ा देवालय। मान्यता है कि बिना आरती के कोई भी पूजा विधि अधूरी मानी जाती है। क्या आपने कभी इस बात पर विचार किया है कि पूजा में आरती का इतना अधिक महत्व क्यों है? यदि नहीं, तो आज हम आपको बताते हैं कि आरती को पूजा में इतना महत्वपूर्ण स्थान क्यों दिया गया है।

धार्मिक महत्व: मंत्र और पूजा विधि की त्रुटियों का निवारण

स्कन्द पुराण में आरती के महत्व का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति पूजा के दौरान मंत्रों का उच्चारण करना नहीं जानता या उसे पूजा की सही विधि का ज्ञान नहीं है, लेकिन वह भक्ति भाव से आरती करता है, तो भगवान उसकी पूजा को पूर्ण रूप से स्वीकार कर लेते हैं। इस प्रकार, आरती पूजा में अनजाने में हुई त्रुटियों या अपूर्णताओं को दूर करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण: सकारात्मक ऊर्जा का संचार

आरती केवल धार्मिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसका वैज्ञानिक आधार भी है। आरती की थाली में प्रायः रुई, घी, कपूर, फूल और चंदन जैसी सामग्रियां उपयोग की जाती हैं। रुई शुद्ध कपास से बनी होती है और इसमें किसी प्रकार की मिलावट नहीं होती। इसी प्रकार, घी दूध का शुद्ध सार तत्व होता है। कपूर और चंदन भी शुद्ध और सात्विक माने जाते हैं।

जब रुई के साथ घी और कपूर की बाती जलाई जाती है, तो वातावरण में एक मनमोहक सुगंध फैलती है। यह सुगंध आसपास के वातावरण में उपस्थित नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने में सहायक होती है। इस प्रकार, आरती न केवल हमारी भक्ति को व्यक्त करने का एक तरीका है, बल्कि यह हमारे आसपास के वातावरण को भी शुद्ध और सकारात्मक बनाती है।